आशीष अग्रवाल
बरेली के ऐतिहासिक श्री त्रिबटी नाथ मंदिर परिसर विगत 27 मार्च से महामण्डलेश्वर स्वामी उमाकांतानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा संगीतमय रामकथा का सस्वर वाचन और साथ मे कलकता के कलाकारों ने कथा के दौरान आए प्रसंगों का भव्य मंचन करके माहौल को सजीव कर दिया ।
स्वामी उमाकांतनंद का कथा वचन का अपना एक अलग तार्किक ढंग है । बीच मे वह तमाम अंधविश्वासों और धर्म के नाम पर भयभीत करने वाली कुछ प्रचलित बातों से सतर्क भी करते हैं । मसलन जीवन के बाद स्वर्ग और नरक के भोगों और यतनाओं की बात ही लें, स्वामी जी का कहना है की जब आत्मा अजर अमर है ,इसे शस्त्र काट नहीं सकता,अग्नि जला नहीं सकती, तो फिर मृत्यु के बाद जब शरीर यहीं रह जाता है ,आत्मा को सुख और दुख से कोई लेना देना नहीं है ,कौन सुख और यातना भीगता है ,ज्यादा न कहते हुये उन्होने इस तरह की कथाओं को सांकेतिक रूप से कपोल कल्पित बता दिया । सार यह था की करमानुसार गति यहीं है । इस तरह के कई प्रसंगो के जरिये उन्होने तमाम प्रचलित मान्यताएं भ्रमित करने वाली मानीं ।